16 दिसंबर 1971 को बांग्लादेश को आज़ादी मिली, जिसे एक बड़ी जीत माना गया।
युद्ध के दौरान, अमेरिका ने अपनी नौसेना (सेवंथ फ्लीट) को बंगाल की खाड़ी में परमाणु हथियारों की क्षमता के साथ भेजा, जिसके जवाब में सोवियत संघ (USSR) ने भी अपनी परमाणु सक्षम नौसेना भेज दी।
शीत युद्ध के कारण अमेरिका और सोवियत संघ के बीच सीधा टकराव टल गया, जिससे भारत को पाकिस्तान के खिलाफ अपना अभियान पूरा करने का अवसर मिला।
सोवियत संघ का समर्थन भारत के लिए महत्वपूर्ण था, जिसने यह सुनिश्चित किया कि भारत को युद्ध के दौरान कोई बाहरी हस्तक्षेप परेशान न करे।
दिसंबर 1971 के युद्ध के बाद, जुलाई 1972 में शिमला समझौता हुआ, जिसमें भारत की ओर से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो शामिल थे।
भारत के पास 93,000 पाकिस्तानी युद्धबंदी (जो उनकी कुल सेना का एक तिहाई थे) और सिंध व पंजाब में लगभग 9000 वर्ग किलोमीटर का पाकिस्तानी क्षेत्र था।
पाकिस्तान की स्थिति "ठन ठन गोपाल" (एकदम खाली) थी, और उस पर अपने सैनिकों को छुड़ाने का भारी दबाव था।
यहाँ एक टाइमलाइन है जो प्रमुख घटनाओं को दर्शाती है:
भारत में पीओके और बलूचिस्तान को लेने की जन मांग थी, लेकिन कई अंतर्राष्ट्रीय और भू-राजनीतिक कारकों के कारण ऐसा नहीं किया गया।
यहाँ एक माइंड मैप है जो पीओके न लेने के कारणों को दर्शाता है:
शिमला समझौते में यह तय हुआ कि दोनों देश नियंत्रण रेखा (LoC) का सम्मान करेंगे और आपसी मुद्दों को द्विपक्षीय बातचीत से सुलझाएंगे, किसी तीसरे पक्ष को शामिल नहीं करेंगे।
1971 में पीओके न ले पाना इंदिरा गांधी की कमजोरी नहीं, बल्कि उस समय के अंतर्राष्ट्रीय समर्थन और कई अन्य कारकों का परिणाम था।
1971 की करारी हार के बाद, पाकिस्तान ने अपनी रणनीति बदली और जनरल ज़िया-उल-हक के नेतृत्व में इस्लामीकरण पर जोर दिया।
नई रणनीति में भारत को "हजारों घाव" देने की बात कही गई, जिससे भारत हर जगह से खून बहाता रहे, बजाय सीधे युद्ध के।
1980 के दशक से, पाकिस्तान ने प्रॉक्सी वॉर (छद्म युद्ध) की रणनीति अपनाई, क्योंकि प्रत्यक्ष युद्ध बहुत महंगा और मूर्खतापूर्ण माना गया।
युद्ध बहुत महंगा सौदा है, जिसमें भारी जनहानि और संसाधनों का नुकसान होता है।
वियतनाम युद्ध (1955-1975) में दुनिया का सबसे शक्तिशाली देश अमेरिका 20 साल तक लड़ने के बाद हार गया, जिसमें उसके 58-60 हजार सैनिक मारे गए।
रूस-यूक्रेन युद्ध (2022-वर्तमान) में रूस को लगा था कि वह यूक्रेन को कुछ दिनों में हरा देगा, लेकिन पश्चिमी देशों के समर्थन के कारण यह युद्ध 3 साल से अधिक समय से चल रहा है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में बिरादरी (alliances) का महत्व होता है; कोई भी देश अकेले अमेरिका या सोवियत संघ जैसी शक्तियों से नहीं भिड़ सकता।
आतंकवाद के मूल कारणों में बेरोजगारी, वैज्ञानिक शिक्षा की कमी (केवल धार्मिक शिक्षा), और गरीबी शामिल हैं, जिससे लोग अफीम की खेती और आतंकवाद जैसे "व्यवसायों" की ओर मुड़ते हैं।
2008 मुंबई हमला: इसमें लगभग 175 नागरिक मारे गए। भारत ने उस समय राजनयिक तरीके से जवाब दिया, प्रमाण इकट्ठा कर डोजियर दुनिया भर को दिखाया।
2016 उरी हमला: 19 भारतीय सैनिक शहीद हुए। तत्कालीन सरकार (नरेंद्र मोदी) ने केवल बातचीत के बजाय कुछ कार्रवाई करने का निर्णय लिया।
सर्जिकल स्ट्राइक (2016): उरी हमले के लगभग 10 दिन बाद, भारतीय कमांडो ने LoC के अंदर आतंकी ठिकानों पर हमला किया, जिसमें 20-50 आतंकवादी मारे गए। इसका उद्देश्य यह संदेश देना था कि आतंकवाद की कीमत चुकानी पड़ेगी।
2019 पुलवामा हमला: CRPF की बस पर हुए आत्मघाती हमले में 40 अर्धसैनिक बल के जवान शहीद हुए।
बालाकोट एयरस्ट्राइक (2019): पुलवामा के बाद, भारत ने 12 हवाई जहाजों से पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा प्रांत में बालाकोट स्थित एक आतंकी शिविर पर बमबारी की, जो भारतीय सीमा से लगभग 50 किमी अंदर था। भारत का मानना था कि इसमें लगभग 400 आतंकवादी मारे गए।
पहलगाम घटना (2025): 26 नागरिकों की हत्या हुई। भारत ने एक साथ 9 आतंकवादी शिविरों पर हमला किया, जिनमें से कुछ पीओके में और कुछ पाकिस्तान के पंजाब प्रांत (जैसे बहावलपुर, मुरीदके, मुजफ्फराबाद, सियालकोट) में थे। इस बार भारतीय विमान पाकिस्तान के अंदर नहीं गए; मिसाइलें भारतीय सीमा से ही 50-100 किमी दूर सटीक ठिकानों पर दागी गईं, जो सैन्य प्रौद्योगिकी में प्रगति को दर्शाता है। सरकार का कहना है कि 100 से अधिक आतंकवादी मारे गए। भारत ने अपने हमलों को केंद्रित (focused), मापा हुआ (measured), और गैर-बढ़ावा देने वाला (non-escalatory) बताया। इसका उद्देश्य हिसाब बराबर करना और अपनी क्षमता का प्रदर्शन करना था, बिना युद्ध को बढ़ाए। इस बार कोई भारतीय पायलट नहीं गिरा, जैसा कि 2019 में हुआ था।
यहां एक टाइमलाइन है जो भारत की आतंकवाद विरोधी प्रतिक्रियाओं को दर्शाती है:
1971 में दुनिया द्विध्रुवीय थी (अमेरिका बनाम सोवियत संघ), जिसमें सोवियत संघ भारत के साथ था।
2025 में दुनिया बहुध्रुवीय है, जिसमें चीन, रूस, अमेरिका, यूरोप, इजराइल और भारत जैसी कई शक्तियां हैं।
पाकिस्तान के पास मुस्लिम देशों के समर्थन और चीन व अक्सर अमेरिका के साथ होने का लाभ है।
रूस (पूर्व सोवियत संघ) अब भारत का खुलकर समर्थन नहीं कर रहा है, क्योंकि भारत ने रूस-यूक्रेन युद्ध पर संतुलित रुख अपनाया है।
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपनी और विरोधी की ताकत के साथ-साथ सहयोगियों पर भी विचार करना पड़ता है।
सोशल मीडिया और निजी टीवी चैनल युद्ध जैसा माहौल बनाते हैं, जिससे जनता की उम्मीदें बढ़ जाती हैं और पूरी तरह से युद्ध न होने पर निराशा होती है।
युद्ध में नैरेटिव (कथा) का महत्व होता है कि कौन जीत का दावा करता है; पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने 2025 के हमलों के बाद जीत का दावा किया।
बातचीत में पहला फोन या संदेश करने वाला पक्ष कमजोर माना जाता है; पाकिस्तान ने युद्धविराम के लिए पहला फोन किया था।
ट्रंप ने संघर्ष रोकने का श्रेय लिया और कश्मीर समस्या को "हजारों साल पुरानी" बताकर गलत जानकारी दी।
भारत ने युद्धविराम के तुरंत बाद एक उच्च-स्तरीय प्रेस कॉन्फ्रेंस करके नैरेटिव को नियंत्रित करने का अवसर गंवा दिया, जिससे जनता में भ्रम और निराशा हुई।