एक शक्तिशाली और बुद्धिमान नारी की असाधारण गाथा
महाभारत काल की एक महत्वपूर्ण कथा में छठ पूजा का उल्लेख मिलता है। जब पांडव अपना सारा राज्य जुए में हार गए, तब उनकी पत्नी द्रौपदी ने छठ व्रत रखा और सूर्यदेव से प्रार्थना की। उनकी तपस्या और श्रद्धा से प्रसन्न होकर सूर्यदेव ने पांडवों को उनका खोया हुआ राज्य वापस दिलाया। इस कथा के आधार पर छठ पूजा को संकटों से मुक्ति और खोई हुई वस्तुओं की प्राप्ति का पर्व माना गया है।
यज्ञ कुण्ड से जन्म लेने वाली, प्रतापी राजा द्रुपद की पुत्री, जिन्हें याज्ञनी नाम से भी जाना जाता है।
अक्षय कौमार्य का वरदान प्राप्त, पंचकन्या में नामित, और भारत की महानतम नारियों में से एक।
असाधारण रूप-गुण, संयम, धैर्य, शील और समर्पण से परिपूर्ण, जिसने उसे अपने युग की सबसे बुद्धिमान स्त्री बनाया।
द्रौपदी, जिसे पाँच पांडवों की पत्नी के रूप में जाना जाता है, का व्यक्तित्व महाभारत की धुरी है। यह युद्ध पारिवारिक वैमनस्य का एक ऐसा उदाहरण है, जिसके परिणाम भारत कभी नहीं भूल सकता। द्रौपदी केवल पाँचाल नरेश की पुत्री याज्ञयसेनी नहीं हैं, बल्कि वह भारत की महानतम नारियों में से एक हैं।
"नारी को गठरी के समान नहीं, बल्कि इतनी शक्तिशाली होनी चाहिए कि वक्त पर पुरुष को गठरी बना कर अपने साथ ले चले।"
अर्जुन के विजयी होने पर द्रौपदी ने उनका वरण किया, जिससे उनके जीवन की नई यात्रा शुरू हुई।
माता कुंती के "बाँट लो" के शब्दों ने द्रौपदी को पाँच पांडवों की पत्नी बना दिया।
श्री कृष्ण की कृपा से द्रौपदी का चीरहरण नहीं होने दिया गया, जो उनकी श्रद्धा और संकल्प की शक्ति को दर्शाता है।
द्रौपदी ने अपने पुत्रों के हत्यारों को भी माफ़ किया और गुरु पुत्र अश्वथामा का वध नहीं होने दिया।
द्रौपदी का चरित्र केवल पाँच पतियों की पत्नी के रूप में नहीं, बल्कि एक शक्तिशाली और बुद्धिमान नारी के रूप में देखा जाना चाहिए। उनका व्यक्तित्व आज भी नारी सशक्तिकरण के लिए प्रेरणादायक है। द्रौपदी निश्चय ही एक श्रेष्ठ नारी हैं, जिनका रूप-गुण, बुद्धि और असाधारण धैर्य उन्हें अद्वितीय बनाता है।
द्रौपदी भारतीय संस्कृति में नारी शक्ति और साहस का प्रतीक बन गई हैं।
महाभारत की धुरी और पंचकन्या में शामिल, द्रौपदी का साहित्य में विशेष स्थान है।
आज के युग में द्रौपदी की कहानी नारी सशक्तिकरण के लिए प्रेरणा देती है।