संतान सुख और दैवीय कृपा की अमर गाथा
राजा प्रियंवद की कथा भारतीय पुराणों में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है, जो छठ पूजा के पीछे की धार्मिक मान्यता को स्पष्ट करती है। यह कथा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह मातृत्व और संतान सुख की प्राप्ति के लिए की जाने वाली तपस्या का भी उदाहरण प्रस्तुत करती है।
राजा प्रियंवद एक समृद्ध और शक्तिशाली राजा थे, लेकिन उनके जीवन में संतान सुख की कमी थी। इस दुख को दूर करने के लिए उन्होंने महर्षि कश्यप से सहायता मांगी।
महर्षि कश्यप ने यज्ञ का आयोजन किया और यज्ञ की आहुति के लिए बनाई खीर रानी मालिनी को दी गई, जिससे उन्हें गर्भधारण हुआ।
रानी ने मृत पुत्र को जन्म दिया, जिससे राजा गहरे दुख में डूब गए और श्मशान में अपने प्राण त्यागने का निर्णय लिया।
तभी भगवान ब्रह्मा की मानस पुत्री प्रकट हुईं और अपने परिचय में कहा कि वे सृष्टि के छठे अंश से उत्पन्न षष्ठी देवी हैं।
देवी ने राजा को अपनी पूजा करने और दूसरों को प्रेरित करने का आदेश दिया, जिससे उन्हें दुख से मुक्ति मिलेगी।
राजा ने देवी षष्ठी का व्रत किया और भक्ति से पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई, जिससे छठ पूजा की परंपरा शुरू हुई।
देवी षष्ठी को संतानों की रक्षक और कल्याणकारी देवी माना जाता है। वे बच्चों के स्वास्थ्य, दीर्घायु और सुख-समृद्धि के लिए पूजी जाती हैं। छठ पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ देवी षष्ठी की भी विशेष पूजा की जाती है।
"राजन, तुम मेरी पूजा करो और दूसरों को भी प्रेरित करो, तो तुम्हें इस दुख से मुक्ति मिल जाएगी।"
राजा प्रियंवद की कथा से यह स्पष्ट होता है कि देवी षष्ठी की पूजा संतान सुख की प्राप्ति के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। तभी से छठी मैया की पूजा का यह पर्व मनाया जाने लगा। यह पर्व न केवल संतान सुख की प्राप्ति के लिए है, बल्कि यह मातृत्व की महत्ता और देवी की कृपा को भी दर्शाता है।
छठ पूजा के दौरान, भक्तजन विशेष रूप से सूर्य देव और देवी षष्ठी की पूजा करते हैं, ताकि उन्हें संतान सुख और समृद्धि की प्राप्ति हो सके। यह पर्व आज भी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है, और यह भारतीय संस्कृति का एक अभिन्न हिस्सा बन चुका है।